पुरातनि सँ सदति नारि , अपन कर्तव्य करैत छथि
आख्यानों में ई ब्याख्या , मनीषि सभ केने छथि
अगर भूलो सँ जौं नारि , नहि करती कर्म ओ अप्पन
त ई श्रृष्टि कोना बाँचत , एतेक त सभ जानए छी
अहिल्या जे शिला बनली , तकर अनुमान अछि किनको
छललि गेली ओ पुरुषे सँ , भेलनि उद्धार पुरुषे सँ
मुदा नारिक ई पीड़ा , नहि बुझलक आई तक कीयो
रचल किनकर ई विधना छी , बुझाओत ई बुझौअल के
स्वयंवर जीति के अनला , कहाबैत छला धनुर्धर जे
पति पाँचो धुरंधर छलनि , सगर संसार जानैत छी
छलल अपने सँ ओ गेली , जे अबला नारि बनि गेली
जे अग्नि पुत्री छली ज्वाला , लगाओल दाव पर गेली
बाँचत सम्मान कोना के , कठिन ई प्रश्न अछि सोचू
मिझाओल दीप जौं राखब , भेटत उजियार कोना के
हवस के भेंट जौं चढ़ती , सदति श्रृष्टि के निर्मात्री
तखन श्रृष्टि कोना बाँचत , एतेक त सभ जानैत छी
लेखक -:
कल्पना झा
१६. ११. २०१७
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