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Saturday 25 November 2017

अबला

पाथड़    सन   करेजा छै जकर,
 नहि    सुनै  अबलाक  चित्कार।
मनुक्ख  नै  वहशी भेड़िया  छै ,
जे करै मातृशक्तिक बलत्कार l
के   बच्चा  , के    बूढ़- जआन,
तकर  नहि  कनियो  पहिचान।
ऒहि  माइयो  केँ  नहि छोड़ै  छै,
जाहि    कोखिक  अछि  संतान l
बेटी-बहिन  पर  नहि  करै  दरेग,
ओकरो इज्जति केँ करै तार-तार l
मनुक्ख  नहि वहशी  भेड़िया छै ,
जे  करै  मातृशक्तिक बलत्कार ।
कोन   युग   आब   आबि    गेलै,
ककरा    पर    करत    विश्वाश।
ककरो इज्जति नहि सुरक्षित छै ,
भगवान   पर  आब केवल  आश l
हे    प्रभु    पापक    अंत    करु ,
अहीं     लिअ    फेरो     अवतार।
मनुक्ख  नहि वहशी  भेड़िया छै ,
जे  करै  मातृशक्तिक  बलत्कार l
जे   नारी    छल   देवी    समान ,
संकट    में    छै   ओकर    जान।
सभ    मिलक'    कुकर्म  करै  छै ,
नोचि- नाचिक'   लै   छै     प्राण।
जे   मर्दानगी   देखबै   नारी  पर,
 ऐहन मर्द केँ 'प्रेमेन्द्रक'  धिक्कार।
मनुक्ख   नहि  वहशी भेड़िया छै,
जे करै  मातृशक्तिक    बलत्कार।
सीताक    हृदय   कानैत   हेतनि,
 आँखि   सँ   झहरैत   हेतनि    नोर।
विभत्स घटना सभ देखि - देखिक',
  अंतरात्मा  दैत  हेतनि   झकझोरि। 
फेर  सँ  एक  बेर  फाटू हे  धरती, 
नारी    केँ      करियौ      उद्धार।
मनुक्ख  नहि वहशी भेड़िया छै,
जे करै मातृशक्तिक  बलत्कार।

 -----कमलेश प्रेमेंद्र-------------
आहपुर-दामोदरपुर,बेनीपट्टी

Thursday 23 November 2017

मैथिलीक कोनो नामे नञि !

कत्तेक ढोही अतितक बखान, 
वर्तमान, भुगोलक ठेकाने नञि
जनक, विद्यापतिक जय जय केलौं 
मुदा ललित बाबूक गुणगाने नञि

बोइनक फेर में जत तत छिछियाई 
मिथिला में कोनो कारखाने नञि
एम्हर ओम्हर दोसरक बोली 
घ'रो मे मैथिलिक सम्माने नञि

अनूप ओझरायल पान मखान मे 
विकासक कोनो बखाने नञि
बरखी सराध मे व्यस्त अत्तेक 
दहेज़ मुक्त मिथिला पर ध्याने नञि

जनगणना मे हिन्दी मातृभाषा 
मैथिलिक कत्तौ कोनो नामे नञि!
मुम्बई दिल्ली मे कि मिथिला राज बनत?
मिथिलाक धरती पर कोनो प्लाने नञि

कहितौं हमहुँ जय मैथिल 
मुदा कहबाक कोनो बहाने नञि!


लेखक : अनूप सत्यनारायण झा

मैथिली संस्कृति अथवा मिथिलामक अवयव

डॉ. कैलाश कुमार मिश्र

मैथिली संस्कृति अथवा मिथिलामक अवयव  

      मैथिली संस्कृतिकेँ समग्रतामे मिथिलाम कहल जा सकैत अछि। कुनो सांस्कृतिक क्षेत्र अपन किछु विशेष खानपान, विध बेबहार, गीत संगीत आदिक कारणे विशेष स्थान आ पहिचान रखैत अछि। मैथिली संस्कृति अथवा मिथिलामक सेहो अपन विलक्षण विशेषता छैक। कनिक ओहि विलक्षणता पर विचार करी।
मिथिलाम संक्षिप्त रूपसँ 6 भाग में देखल जा सकैत अछि:
क) खानपान, ख) वस्त्र विन्यास, ग) गीत आ संगीत, घ) वाद्ययंत्र, च) भाषा , छ) धार्मिक संप्रदाय आ परंपरा।
क. खानपान 
खानपान कोनो समाजक संस्कृतिक मूल होइत अछि। 
परम्पराक बात करी त' मैथिल चारि बेर भोजन करैत छथि:

i.  पनपियाइ: किछु आहारग्रहण उपरांत जलग्रहण। 
ii. कलउ/ मँझिनी: मध्याह्न भोजन कायाकल्प तृप्यान्त स्थुल शरीर तृप्त्यार्थ अन्न-फल-जल सँ परिपूरित            भोजन।
iii. बेरहट: दिनक चारिम पहर मे लेल जायवला आहार।
iv. रातुक भोजन। कतेक लोक रातिक हल्लुक आ सुपाच्य आहार लैत छथि जकरा "हलझप्पी" कहल जाइत           अछि।
आब कनि सामग्री आ विन्यासक बात करी:

मिथिला मे खानपान दू दृष्टिकोण सँ देखल जा सकैत अछि। भोजनक मुख्य आ स्थानीय तत्त्व आ दोसर भोजनक सचार। जखन बहुत रासक वस्तुसँ भोजनक थारी अथवा थार सजाएल जाएत अछि त' ई भेल सचार। सचार में कोनो जरुरी नहि जे सब वस्तु अथवा भोज्य सामग्री स्थानीय हो। जखन भोज्य सामग्री के बात करैत छी त मिथिलाक मूल भोज्य सामग्रीक ज्ञान बुझ पडत। 
एक फकड़ा कहल जाइत छैक:--
तिरहुतीयताक भोजन तीन।
कदली    कबकब      मीन।।

आब कनि एकरा देखी:
      कदली (केरा): केरा गाछक सब चीज़क प्रयोग मिथिला मे होइत अछि। थम्बक भीतरक गुद्दाक तरकारी, कोषाक तरकारी, कांच केराक तरकारी, पाकल केराक विविध रूप मे प्रयोग। कोनो भार बिना केराक पूर्ण नहि अछि। केराक प्रयोग सब बिध, बेबहार, पूजा पाठ, उत्सव, सत्यनारायण कथा आदि मे होइत अछि। कांच केराक तरकारी पथ्य के रूप मे प्रयुक्त अछि। केरा थम्भ के बहुत शुभ कार्य मे प्रयोग होइत अछि। केराक पात पर भोजन करब अदौसँ अबैत परंपरा अछि।

          कबकब: कबकबक अंतर्गत भेल ओल, खमहारु , कौआं पात , ओलक पेंपी, कन्ना पात, अरिकंचक लोढ़हा, आदि। ओल शुद्ध आ सुपाच्य वस्तु अछि। सामूहिक भोज में ओलक सन्ना अनिवार्य रहैत अछि। ओलक तरकारी सेहो खूब चावसँ हमरालोकनि खाइत छी। खमहारुक तरुआ अथवा खमहारुआ मिथिलाक विशेषता अछि। अरिकोंच ओनात' सब खाइत छथि मुदा स्त्रीगनक मध्य ई कनि अधिक प्रिय अछि। कबकब भोज्य पदार्थक विन्यासमे कागजी, ज़मीरी नेबो, कांच आम, आ आमिलक प्रयोग होइत अछि।
एकर अतिरिक्त सुथनी, अरुआ आदि पदार्थक सेहो कबकबक श्रेणी मे राखल जा सकैत अछि।

        मीन : मीनक अर्थ भेल माछ। माछ त अपना सभक भोजनक मुख्य पदार्थ अछि। अनेक तरहक माछ आ माछक संग संग ओहि प्रजातिक अन्य चीज़ जेना कांकोड, डोका, काछु आदि खेबाक परंपरा मिथिला मे अछि।
माछक अनेक तरहेँ उपयोग भोजन विन्यास मे होइत अछि। माछक तरल, माछक झोड़, माछक सन्ना आदि।

       ई त भेल तीन मुख्य तत्त्व। एकरा अतिरिक्त किछु पदार्थ अछि जे मैथिल के बहुत प्रिय छनि। ई सब अछि:
          नाना तरहक साग, जेना केराव, बूट, गेनहारी, बथुआ, ख़ेसारी, करमी आदि। सागक महत्व मिथिला मे बहुत रहल अछि। बसन्त पंचमी लगैत देरी बेटी सगतोरनी भ' जाइत छैक। बूट-केराव आ खेसारीक साग तौला सभमे मह-मह करैत खदकैत रहैत छैक। सामान्य लोक आ सभ जातिक लोक साग-भात भरि इच्छा हरियर मरिचाइ गूडि गूडि सुआद लए लए खाइत अछि। बिना तिलकोरा तरुआकेँ मिथिलाक भोजन बेकार। चाउर पिठारक लेप मे बोरि क' सरिसबक तेल मे तरब। कुर कुर स्वादक अनुभूति सँग खैब मिथिले मे संभव छैक।

          गरीब गुरबा सब कुअन्न जेना मड़ुआ, ख़ेसारी, अल्हुआ, कौन, साम, मकई, अल्हुआ, कन्द आदि खाए सेहो अपन गुजड़ करैत छ्ल। आब स्थिति मे सुधार भेलैक अछि आ सब कियोक एक साँझ भात त दोसर साँझ गहुमक सोहारी एकर अतिरिक्त तरकारी, तीमन, दालि अचार आदिक सङ्ग खाइत छथि।

     दही-चूरा, चीनी: समस्त विश्व मे मिथिले एहेन क्षेत्र अछि जतए दही-चूरा-चीनी मुख्य भोजन आ भोज इत्यादि मे सामूहिक भोजनक रूप मे खाएल अछि। अतेक झटदनि तैयार होबए बला फ़ास्ट फ़ूड दुनिया मे बहुत कम थिक।
       आ सब व्यंजन पर भारी पड़ैत अछि अपन मिथिलाक तिलकोरा । सर्वत्र उपलब्ध, ने दाम ने छदाम, आ स्वादक की कहब? छोट पैघ सब मे अपन स्थान रखने अछि। ई एहेन भोज्य पदार्थ अछि जकरा केवल मैथिल खाइत छथि।
           मिथिलाक भोजक सकरौड़ी विलक्षण होइत अछि। एकरा अपन सभक भात दालिक भोजन के डेजर्ट कहि सकैत छी। सकरौड़ी दूध मे ड्राई फ्रूट्स, बुनिया एवं अन्य सामग्री डालि दूध के खूब गाढ़सँ खौलेलाक बाद बनैत छैक। चीनी सबसँ अंत मे देल जाइत छैक। भोज मे लोक चीनी सुरकैत अछि। सकरौड़ीसँ भोजक अंत होइत अछि। 
           दालि भातक भोजक श्रृंगार थिक बर ।   बर सामान्यतया उड़िदक घाटिसँ बनैत अछि। 
मखान: भारतवर्ष मे सबसँ अधिक मखान अपन मिथिला मे होइत अछि आ सबसँ बेसी एकर उपयोग सेहो हमरे लोकनि करैत छी। 
अंततः भोजनक पूर्णता मुखशुद्धि सँ होइत अछि आ मुखशुद्धि पान सुपारी संगे।
ख. वस्त्र विन्यास 
    परंपरागत वस्त्र मिथिलाक पुरुष लेल धोती, गमछा, या मुरेठा आ स्त्रीगण लेल नुआ, आंगी अछि। किछु विशेष वर्गक लोक या त विशेष अवसर पर अथवा ओहुना पाग सेहो धारण करैत छथि। धोती त मिथिलाक मुसलमान सेहो पहिरैत छला। आब मुस्लमानक बाते छोड़ू हिन्दू सब सेहो धोती सँ बप्पा बैर केने जा रहल छथि। पहिने अपना ओत कोकटा बाँग होइत छल जकर प्राकृतिक रंग ऑफ वाइट होइत छलैक। ओही बांग केर धोती के कोकटा धोती कहल जाइत छलैक। 
         प्राचीन समयमे पुरुष गाम गमैत भ्रमण करबा काल धोती, मिर्जई, दुपट्टा, गमछा, आदिक प्रयोग करैत छला। पैर मे खराम पहिरबाक प्रथा हाल तक छल। पाहुन परखक पएर धोबक हेतु खराम देल जेबाक परंपरा एखनो बहुत ठाम अछि। उच्च वर्ण मे खराम पहिरक व्यवस्था उपनयन संग प्रारम्भ भए जाइत छल। किछु लोक खरपा सेहो पहिरैत छला। खरपाक आधार आर्थत तरवा काठक आ ऊपर मे आँगुर लग प्लास्टिक अथवा चाम लागल रहैत छलैक। 
           कालान्तर मे लोक गोल गला सेहो पहिरनाइ प्रारम्भ केलनि। 
मिथिलाक स्त्रीगण सब व्यवहार कएल वस्त्र यथा धोती आ नुआ सँ केथड़ी आ सुजनीक निर्माण सुई ताग सँ करैत छली। केथड़ी मोटगर होइत छैक जकर व्यवहार मोटगर गद्दा जकाँ जारक समय बिछेबाक हेतुकएल जाइत छैक। सुजनी कलात्मक होइत छैक। सुजनी मे अनेक तरहक तागक सुन्नर संयोजनसँ बहुत रास डिजाईन , मोटिफ, वोटिफ, पैटर्न आदि बनेबाक प्रथा मिथिला मे छलैक। सब वर्ग आ जातिक स्त्रीगण एहि कलामे निपुण होइत छली। सुजनीक प्रयोग ओछाइनक चद्दरिक रूप मे होइत छैक। किछु लोक गरीबी मे केथड़ी सेहो ओढ़ैत छथि। 
        पूस मासक जड़काला गोइठा-करसी धरि तापए बला रहैत छैक। ओना त' माघक जाड़ बाघ होइत अछि मुदा पंचमी लगैत देरी घोकचल चाम आ मोचरल अंग साहि लोक सोझ भ' क' ठाढ़ होमय लगैत अछि। मोटकी दुसल्ला चद्दरिक गांती बनहैत अछि। गांतीक अर्थ भेल चद्दरिकेँ माथ सँ झाँपैत गरदनिक पाछा मे गिठह बान्हब। सामान्यतया बच्चा आ बूढ़ गांती बनहैत छथि। घूर लोक अगहन, पूस आ माघ धरि पजबइत अछि आ तपैत अछि।

ग. गीत संगीत 
        मिथिलाक लोकगीत एक महासागर अछि। एकर संख्या कतेक अछि से कहब असंभव। मैथिली लोकगीतक विशेषता एकर समवेत गायन शैली छैक। लगभग 98 प्रतिशत गीत बिना कोनो वाद्ययंत्र और विशेष रागसँ गाएल जाइत अछि। मुदा गीतक शब्द, भाव, गबैय्याक उत्साह आ समर्पण, विध बेबहारक प्रति ध्यान , ऋतुक संग स्वभाव, क्रियाकलापसँ प्रतिबद्धता, काज मे लगाव, आपसी प्रेम आ प्रकृति सँ अनुराग बिना कोनो वाद्ययंत्र के सेहो मैथिली लोकगीत के अलग संसार मे ल जाइत अछि। विद्यापतिक पदावली, ताहू में उत्सव विशेषक गीत, सोहर, समदाउन, उदासी, साँझ, प्राती आ शिवक गीत मे महेसवानी , नचारी आ कमरथुआ गीत तन-मनकेँ बहुत हर्षित करैत अछि। सीता, राजा सलहेस, कारिख महाराज, दीनाभद्री, आदिक लोकगाथा आ गीत सेहो अपन अलग स्थान रखैत अछि। सब शास्त्रीय गीत मिथिला मे बहार सँ आयातित अछि, यद्यपि ध्रुपद मैथिली लोकशैली संगे तारतम्य बना सकल अछि। बटगबनी, तिरहुत, लगनी तीव्रगति सँ चलैत गीत आ मोन लगबए बला गीत अछि। उदासी संत परंपरा, कबीरपंथी परम्परा, सँ प्रभावित भ रचल गेल अछि। 
       मिथिलाक उच्चवर्ग विशेष रूपसँ ब्राह्मण आ कर्ण कायस्थ अपन महिला के पब्लिक स्पेस मे गायन, वाद्ययंत्र संगे गायन, नृत्य आदिक स्वतंत्रता नहि देने छथि जाहिसँ एहि वर्गक महिला मे नृत्य, नृत्यगीत, नृत्यनाटिका आदिक शैली नहि विकशित भ सकल छनि। अन्य जाति सब मे डोमकच्छ, जटा-जटिन, झ्झिया, आदिक रूप भेटैत अछि। शामा चकेबा मे बहुत साधारण तरहक नृत्य आ उत्साहक स्वतंत्रता देखैत छी।

          मुस्लमान महिला सब ताजिया के समय झिझिया छाती पीट पीट गबैत छथि। हुनकर स्वर आ टोन बहुत हद तक उदासी आ समदाउन सँ मेल खाइत छनि।

घ. वाद्ययंत्र 
       मिथिलाक मूल वाद्ययंत्र रसनचौकी मे प्रयुक्त होइत अछि। दुर्भाग्य सँ एकरा कहियो मिथिलाक तथाकथित विद्वान लोकनि प्रोत्साहित नहि केला। एकरा बारेमे कहल जाइत अछि जे जखन सीता राजा जनक द्वारा हर जोतैत काल स्वर्ण कुम्भसँ धरतीसँ बहार भेली त भगवान स्वर्गसँ प्रसन्न होइत अप्सरा, वाद्ययंत्र आ ओकरा बजबए बला कलाकार सेहो मिथिला पठेला। किछु लोकक कहब छनि जे चूँकि ई वाद्ययंत्र चमार बजबैत छथि ताहि एहि पर विशेष ध्यान नहि देल गेल।
 च. भाषा:
        मैथिली भाषा प्राचीन भाषा अछि। एकर अपन लिपि छैक मुदा आब लोक देवनागरी मे लिखैत छथि। बंगला लिपि मिथिलाक्षर सँ प्रेरित भ बनल अछि। एहि भाषा में विद्यापति, ज्योतिरेश्वर, चंदा झा, लाल दास, हरिमोहन झा आ यात्री सनहक़ साहित्यकार भेल छथि। मैथिली भाषाक अनेक उपभाषा अथवा बोली जेना अंगिका, बज्जिका, मुस्लमानक (कुंजड़ा), सीतामढ़ीक उपभाषा आदि मे देखल जा सकैत अछि।
छ.  धर्म आ संप्रदाय 
        मिथिला मे सब वर्णक लोक, सब धर्मक लोक रहैत छथि। अतए केर हिन्दू पंचोपासक छथि। महादेवक पूजा माटिक महादेव बना अद्भुत ढंग सँ कएल जाइत अछि। बुद्धक भाषा आ चार्यपदकेँ एखनो मैथिली अपना मे आत्मसात केने अछि। तंत्रमे बौद्ध तंत्रक स्पष्ट प्रभाव छैक। सिद्धपीठ आ बज्रयानक तंत्र स्थल मिथिला मे आबि जेना संगम जकाँ एक दिशा मे एक भए बहए लगैत अछि। मुस्लमान सब सेहो अपन धर्मक पालन करैत छथि संगहि किछु लोक परंपराक तत्वक अपना मे समावेश क लेत छथि।

सीताकेँ मिथिलाक स्त्री नायिकाक प्रतिनिधि आ राजा सलहेसकेँ पुरुष नायकक प्रतिनिधि कहल जा सकैत अछि।
ज. मिथिला चित्रकला
मिथिला चित्रकला जकरा मधुबनी चित्रकला सेहो कहल जाइत अछि, अपन स्थान आ नाम कला संसार मे नीक जकाँ दर्ज करा लेने अछि। एहि पर बड्ड लिखब अनिवार्य नहि। इंगित भ गेल अतेक काफी अछि।


👏👏👏👏👏

ज्योतिरीश्वर रंगशीर्ष सम्मान - 2017 सँ सम्मानित हेताह श्री उमाकांत झा

वरीष्ठ रंगकर्मी उमाकांत झाक जन्म सन 1951 . मे बिहार राज्यक कटिहार जिलाक अंतर्गत पोखरिया ग्राम मे भेलन्हि। बिहार सरकारक विभिन्न विभागमे सेवा देबाक उपरान्त  2011 मे सेवानिबृति भेलाह। 18 बर्षक अवस्था मे (1969 .) एकटा नौटंकी कम्पनी ज्वाइन केलाह पटना आबि हिन्दी रंगमंच सँ शुरुआत केलन्हि। नीलकमल कला मन्दिर, नटलोक, प्यारेमोहन सहाय, अखिलेश्वर प्रसाद सिंहा, परवेज अख्तर आदिक सम्पर्क मे एलाह वर्ष 1982 मे मैथिली रंगमंच मे प्रवेश केलन्हि। चेतना समिति, अरिपन, भंगिमा आदि संस्था सँ अपन नाता जोड़लन्हि लगभग 36 वर्ष के मैथिली रंगपटल पर अपन यात्रा मे लगभग डेढ़ सौ नाटक के बारह सए सँ बेसी प्रस्तुतिक सहभागी रहलाह । सुप्रसिद्ध रंग संस्था भंगिमाक संस्थापक सदस्य छथि भंगिमा द्वारा लगभग 32 वर्ष सँ अनवरत मंचित होमए बला नाटक काठक लोकमे आइयो बाबाक किरदार निभा रहल छथि किरदार एतेक प्रचलित और प्रसंशित भेल जे हिनका रंगकर्मी एवं प्रेक्षकगणबाबाउपनाम सँ सम्बोधन कर' लगलाह। 
अनेकानेक  सम्मान सँ सम्मानित उमाकांत जीकेँ  कलाश्री सम्मान, शैलबाला पुरस्कार, चेतना समिति सम्मान सँ सेहओ सम्मानित कएल गेल छन्हि मैथिली रंगमंचमे हिनक अतुलनीय योगदान एवं विशिष्ठ अवदान के लेल ज्योतिरीश्वर रंगशीर्ष सम्मान सँ सम्मानित क’ आई मैथिली लोक रंग (मैलोरंग) स्वयं गौरवांवित भ' रहल अछि  

ज्योतिरीश्वर रंगशीर्ष सम्मान सँ पूर्वमे सम्मानित रंगशीर्ष
2010 : प्रेमलता मिश्रप्रेम (पटना
2011 : दयानाथ झा (कोलकाता
2013 : महेन्द्र मलंगिया (मधुबनी
2014 : कुणाल (पटना
2015 : छत्रानन्द सिंह झाबटुक भाई’ (पटना
2016 : प्रो. उदय नारायण सिंहनचिकेता’ (कोलकाता
2017 : उमाकांत झा (पटना)

Wednesday 22 November 2017

विवाह - गीत


विवाह पंचमी के मंगल मय  शुभकामना अछि  ,
                                    रेवती रमन झा "रमण "
|| विवाह - गीत || 
बाबा     करियो       कन्या      दान  
बैसल   छथि  , बेदी पर  रघुनन्दन | 
 दशरथ सनक  समधि  छथि आयल 
 हुनकर        करू       अभिनन्दन  ||  
                        बाबा करियो ----
नयनक    अविरल     नोर     पोछु  
ई    अछि      जग    के      रीत  | 
बेटी   पर  घर    केर  अछि   बाबा 
अतबे    दिन  केर   छल    प्रीत  || 
मन  मलान  केर  नञि अवसर  ई 
चलि     कय  करू   गठबन्धन   || 
                     बाबा करियो ----
जेहन   धिया   ओहने  वर  सुन्दर 
जुरल         अनुपम           जोड़ी  |
 स्वपन  सुफल सब  आइ हमर भेल 
बान्धू            प्रीतक            डोरी || 
आजु    सुदिन   दिन   देखू     बाबा 
उतरि    आयल   अछि   आँगन   || 
                  बाबा करियो ----
हुलसि   आउ  सुन्दरि  सब   सजनी 
गाबू                मंगल             चारु | 
 भाग्य        रेख   शुभ रचल   विधाता 
अनुपम            नयन           निहारु  || 
"रमण " कृपा  निज दीय ये गोसाउनि 
कोटि - कोटि  अछि  बन्दन  || 
   बाबा करियो ----

Monday 20 November 2017

बढ़ाबू कदम एम.एस.यू. के संग

मिथिलाक शान छी सभहक गुमान छी

मिथिला लेल बनलौं भगवान
सेनानी हम्मर सत् सत् अछि सबके प्रणाम यो
अप्पन त एकटा अछि नारा एक डेग विकास लेल
अई विपति मे भागल नेता तकबई सब कहाँ गेल
पूरा भारत मे भ गेलई एम.एस.यू. के नाम यो 
अई विपति मे साथ निभा क कतेक बचेला जान यो
सब सेनानी क्रांतिकारी छथि करई सब गुणगान यो
अई काजक लेल उज्जवल करई अछि सबके झुईक प्रणाम यो
अई विपति मे घर-घर जा क पूछला सभहक हाल यो
ई भयावह बाढ़ी के कारण मिथिला अछि बेहाल यो
एम.एस.यू. के साथ निभाबू बढ़तई जग मे नाम यो
घर-घर चलई अहिना चर्चा अहाँ सभहक काज के
दुनिया मे गुणगान करई अछि मिथिला के जाब़ाज के
कतेक लिखू हम अहाँ सब लेल वर्णन नईं अछि काज के
दुनिया मे पहचाइन गेलईया मिथिला के आवाज के


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नाम - उज्जवल कुमार झा 

पिता का नाम- श्री शम्भू नाथ झा 
पता- बसुआरा दरभंगा बिहार 
पुरस्कार-  ऑल इंडिया राइटिंग कम्पीटीशन्स (पेन इट टू विन इट जनवरी  2017) के विजेता, और  प्रतिभा सम्मान विजेता 

पियासल पिआस

बुन्न एक मांगलौं जलक मुदा सागर सँ छल पिआस पैघ 
तापस बाला सन जीवन अद्भुद 
मोन कोनो बात पर कसकल नै 
ई सिकायत अधरों पर नहि आयल 
मेघ किएक हम्मर आँगन बरसल नहि ?
मरुथली रौद में जरैत पइर 
छाहरि लेल तरसल नहि !!
तट सं दूर भँवरक मध्य 
कम्पित लहरि सन भाग्य हम्मर रहल 
सुखक की रहत सौगात 
दुखो रहि  जेल अनकहल !!
नोरक एहि बरखा में 
तीतल  स्वप्न मुदा सिसकल नहि 
आलोक किरण बिखरि गेल 
सर्त  कतेको साथ में 
सुरभि फूल सं विलग कत '
बन्हल तमिस्रा पाश में। 
अहाँ कत्तौ रहु प्यार हम्मर रहत 
अहाँ कत्तौ रहु भावना हम्मर रहत 
आयुक सीमा में नहि आयल ओ दिवस 
दूर अहाँ सं रहि बितैलोँ हम्म 
मूर्च्छित प्राणक तार पर 
सौ गीत विरह केँ गबलहुँ हम्म -----

-डॉ शेफालिका वर्मा