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Saturday, 18 November 2017

आनंदक आभा चहुँ ओर

लेखक : पूर्णेन्दु झा 'बख्शी'

उदयाचलमे अरुणादित्यक                                                                                  
           दर्शन जखने तखने भोर!
आयल भोरहु सहजहि तहिना
           आनंदक आभा चहुँ ओर!!
आनंदित भ' अपन नीड़सँ
             बाहर खेचर करइछ सोर !
सोर मचौने आनि पसारल
              आनंदक आभा चहुँ ओर!!
जागय हमरहु दुनियाँ तहिना
          मानि अपन ई अभिनव भोर!
मुदित प्रभाकरसँ आयल अछि
              आनंदक आभा चहुँ ओर !!
साम्राज्यहु जे राखि बनौने
                दुष्ट कुहेस बड़े घनघोर!
दुष्टक अंतो पाबि सुनिश्चित
              आनंदक आभा चहुँ ओर!!
रुण्ड-मुण्ड भेल दुष्टहु तखने
            भेल उमंगक बड़ हिलकोर!
 अहिना जगमे होअय तहिसँ
              आनंदक आभा चहुँ ओर !!
शांतिबयार बहय भोरहिसँ
              डोलय ई मन तहिसँ जोर!
भाग्य सूर्य तन-मनकेँ जहिसँ
              आनंदक आभा चहुँ ओर!!
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