जीवन एहन भूल-भुलैया
जाहि मे आदमी भटकैत अछि
त' भटकिते रहि जाईत अछि
भ' सकैत छै
ओकरा भटकहे मे आनन्द होए
तैं ने ओकरा
जीवनक मुख्य द्वार सँ
भटक'क लेल रास्ता भेट जाईत छैक
ओ स्वयं
मकड़ा जाल बुनि लैत अछि
आ
स्वयं फंसि जाईत अछि
मुदा
जल्दिये एहसास होइत छैक
घुटनक, तनाबक आ कुंठाक
तत्पश्चात
छटपटाय लगैत अछि
शांतिक तालाश मे
भटकन सँ निकलबाक लेल।
कोनो तरहक भूख होए
प्राणीमात्रकें उत्तेजित क' दैत छैक
आ अभाबें
भटक' लगैत अछि
भिखारी जकां, अपराधि जकां
भूख कथुक होए
जखन, अति भ' जाइछ
त'
ओकरा राक्षस बना दैत छैक
ओकर मानसिकताक सन्तुलन
खराब भ' जाईत छैक
ओकर जीवन मे उथल - पुथल
होमय लगैत छैक
आ जीवन पर्यन्त भेटैछ
मात्र 'भटकन' ।
© संजय झा 'नागदह'
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