महिना लगै मे एखन एक हफ़्ता आर
छै। सभ खुदरा-खुदरी मिला क' गिनलक.....कुल चारि सय नब्बे रुपया मात्र । चाऊर, दालि,
आँटा, तेल त' घर मे भरि महिना के छैहे। बस घटल-बढ़ल
सामान आ तरकारी, दूध यैह सभ के लेल
पाई चाही। ओ अंदाज लगेलक ..... एतबा पाई स'
कहुना महिना खिचा जेतै बशर्ते कोनो अप्रत्याशित खर्चा नहिं बजड़ै। ओ आश्वस्त भ' साईकिल
ल' क' तरकारी लाबय बिदा भेल। कॉलोनी के गेटे पर रफीक अबैत देखा गेलै। ओ रूकल -
'की हौ रफीक भाई! कहाँ स' अबैत छह? ई भरल साँझ क' घोघना कियै लटकेने छह?'
- 'नहिं भाई! कोनो बात नहिं।
सभ ठीक छै।' रफीक सामान्य हेबाक प्रयास केलक।
- ' तों कहब' त' हम कोना पतिया लेब'! किछु बात त'
जरूर छै जे तोरा असहज क' रहल छह। हौ हमहुँ
तोहर भैयारिये छियह। फरिछा क' कह' कोनो बात
छै त' ।' ओ साईकिल स' उतरि रफीक के आर ल'ग गेल।
- की कहिय' भाई.....बात कोनो
ने आ अखन बड़ी टा! अई महिना मे रिश्तेदारी मे कैक टा निकाह सभ रहै ताहि मे हाथ खाली
भ' गेल। आ तही पर कोइढ़ मे नोचनी जकाँ बड़का छौंड़ा के वजीफा के परीक्षा के फॉर्म भरै
के काल्हिये लास्ट डेट छै । छौंड़ा चन्सगर छई फॉर्म नहिंयो भरेबई त' ओहो नीक नहिं आ
ककरो आगू हाथ पसारितो लाज लगैयै।'
- 'कते पाई लगतै?'
- ' साढ़े पाँच सय -- साढ़े चारि
सय के ड्राफ्ट आ सय रुपया के प्रॉस्पेक्टस।'
- ' हमरा ल'ग मे एतबे बाँचल अछि
--- लैह आरो कोनो जोगाड़ क' क' काज चलाबह।'
- 'आ तों?!'
- ' धुर्र मर्दे ! तों हमर चिंता
जुनि करह। एके हफ़्ता रहलैयै आब..... काज कहुना चलिये जेतै। सभक जोगाड़ भगवान लग छनि।
एखन तों जाह जल्दी बाकी के जोगाड़ करह बेटा के फॉर्म भराबह ।'
आब दुहू के ठोर पर मुस्कान छलै।
दुहू अपन घर के रस्ता धेलक। जल्दी घर जा क' बतबै के छै नहिं त' कनियाँ तरकारी लै बैसले रहतै।
आई ओकरा नून-तेल संग रोटी खेबा
मे अपूर्व स्वाद बुझा रहल छलै।
***
कुमार मनोज कश्यप
5/8, ब्लॉक-I, न्यू मिंटो रोड हॉस्टल,
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