शिव उगना बनि एक बेर पुनि मिथिलानगरी आउ |
ई थिक विसपी गाम , सुनब नहि सम्भव एतय नचारी |
सुना परत घर घर आँगन सँ , उकटम पैंचा गारा गारी |
पीपर तर चौपारि कविक छल ,ओतय बिकाइछ तारी |
पीबि केँ सनकल अपनहिँ मे, सभ करैये मारा –मारी|
भाँगक बदला अहूँ पीबि केँ, भरि लबनी भसिआउ |
शिव उगना बनि एक बेर पुनि, मिथिलानगरी आउ ||
सुना परत घर घर आँगन सँ , उकटम पैंचा गारा गारी |
पीपर तर चौपारि कविक छल ,ओतय बिकाइछ तारी |
पीबि केँ सनकल अपनहिँ मे, सभ करैये मारा –मारी|
भाँगक बदला अहूँ पीबि केँ, भरि लबनी भसिआउ |
शिव उगना बनि एक बेर पुनि, मिथिलानगरी आउ ||
आब ने जारनि फारय परत अहाँ केँ एहि ठाँ शंकर|
गैस सिलिंडर सँ चुल्हा जरैत अछि सबहक घर- घर |
हाथ नेने खोरनाठी आब ने कवि पत्नी केँ देखब |
आब ने कवि केर गाए बरद केँ चरा बाध सँ आनब |
घासक बदला चारा दाना कीनि केँ हाट सँ लाउ |
शिव उगना बनि एक बेर पुनि मिथिला नगरी आउ ||
गैस सिलिंडर सँ चुल्हा जरैत अछि सबहक घर- घर |
हाथ नेने खोरनाठी आब ने कवि पत्नी केँ देखब |
आब ने कवि केर गाए बरद केँ चरा बाध सँ आनब |
घासक बदला चारा दाना कीनि केँ हाट सँ लाउ |
शिव उगना बनि एक बेर पुनि मिथिला नगरी आउ ||
शिव सिंहक दरवार आब ने मोटरी लय केँ जाएब |
प्यासल कवि केँ गंगाजल शिव जटा सँ आनि पिआएब |
चीन्हत आब ने कियो अहाँ केँ हे गंगाधर !
खाहेँ गंगाधार भूमि पर जटा सँ अहाँ बहाउ |
शिव उगना एक बेर पुनि मिथिला नगरी आउ ||
प्यासल कवि केँ गंगाजल शिव जटा सँ आनि पिआएब |
चीन्हत आब ने कियो अहाँ केँ हे गंगाधर !
खाहेँ गंगाधार भूमि पर जटा सँ अहाँ बहाउ |
शिव उगना एक बेर पुनि मिथिला नगरी आउ ||
भव्य भवानीपुर मे बनल अहँक स्मारक ,
मेला ठेला हाट बजार लगै अछि अनुपम |
लोटा लोटा जल चढाबय अहँक लिंग पर ,
नारा लगा के जोर जोर सँ हर हर बम बम |
आब ने ओतय अभाव जलक अछि ,पोखरि कूप नहाउ |
शिव उगना बनि एक बेर पुनि मिथिला नगरी आउ ||
मेला ठेला हाट बजार लगै अछि अनुपम |
लोटा लोटा जल चढाबय अहँक लिंग पर ,
नारा लगा के जोर जोर सँ हर हर बम बम |
आब ने ओतय अभाव जलक अछि ,पोखरि कूप नहाउ |
शिव उगना बनि एक बेर पुनि मिथिला नगरी आउ ||
अहाँ अदृश्य भेलौं तँ कवि पागल बनि केँ बौएला
आब ने ताकत कियो रने वन ,उगना रे मोर कतय गेला ?
शिव वाणेश्वर लिंग रूप मे आब देब ककरा दर्शन ,
भक्त अहाँ के आब ने मिथिला कविवर विद्यापति सन |
स्वर्ग सँ पुनि कवि विद्यापति केँ मिथिला नगरी लाउ |
शिव उगना बनि एक बेर पुनि मिथिला नगरी आउ ||
******राम चन्द्र मिश्र "मधुकर", *****
आब ने ताकत कियो रने वन ,उगना रे मोर कतय गेला ?
शिव वाणेश्वर लिंग रूप मे आब देब ककरा दर्शन ,
भक्त अहाँ के आब ने मिथिला कविवर विद्यापति सन |
स्वर्ग सँ पुनि कवि विद्यापति केँ मिथिला नगरी लाउ |
शिव उगना बनि एक बेर पुनि मिथिला नगरी आउ ||
******राम चन्द्र मिश्र "मधुकर", *****
13/11/2016
No comments:
Post a Comment