छी मैथिल जते कहाबी , नहि मिथिला नाम घिनाबी |
सभ फुसिये गाल बजाबी ,अछि खूब कविलती दावी |
अपनों हक उचित ने पाबी ,नहि मिथिला नाम घिनाबी ||
सभ स्वार्थे मे घुरियाबी ,कहि जाति अजाति लड़ाबी ,
दिन बैसल ब्यर्थ बिताबी ,गौरव टा ब्यर्थ देखाबी |
गढ़ि- गढ़ि के बात बनाबी ,नहि मिथिला नाम घिनाबी ||
कहु गर्व सँ हम छी मैथिल ,कए सकल राज्य नहि हासिल ,
नहि रहल परस्पर हिलमिल ,अपना मे कएल फुटौअलि |
झुट्ठे के गाल बजाबी , नहि मिथिला नाम घिनाबी ||
सभ जाति छी मिथिलाबासी ,मैथिल सन्तान प्रवासी ,
त्यागू आलस्य उदासी , सभ द्वेष जे सत्यानासी |
मिलि जुलि के जोर लगाबी ,नहि मिथिला नाम घिनाबी ||
नहि पाश्चाताप केने फल ,नहि कोनो अर्थ मे निर्वल ,
लेब राज्य एकता केर बल ,हो प्राप्त रहय जे जागल |
क्षमता सभ अपन देखाबी , नहि मिथिला नाम घिनाबी ||
हम शक्ति उपासक मैथिल, हम करब अवश्ये हासिल ,
हम क्रान्तिकरब सभ हिलमिल ,सभ जातिक बंधन कए |
तन मन धन नाहि नुकाबी ,नहि मिथिला नाम घिनाबी ||
होउ क्रान्ति करक हित तत्पर ,अंदोलन एहि लय सत्वर ,
नहि करू भरोसा अनकर , निर्माण राज्य जन हितकर |
ता मोजर देत ने ‘मधुकर’ , मिथिला नहि राज्य बनाबी ||
✍✍
**राम चन्द्र मिश्र "मधुकर", ***
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