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Wednesday, 13 December 2017

गजल- गुम्मो रहि क' देखियौ

जिनगी  वरू संघर्षे   भरल हो, एको क्षण  जीवि क' ' देखियौ I
अन्हारक जे सिद्दति  छै, से ईजोत के मुट्ठी मे बान्हि कदेखियौ I

  जानि ने के कहि देलक आहाँके जे रक्तक सम्बन्ध पकिया होई छै I
  सहोदरो अंठिया बनिजाई छै,कोनो गलती 'कहियो कके 'देखियौI

एक   तरफा स्नेहक  दीप   कहु,  आहाँ कतेक काल जड़ा क' रखबै I
कहियो भरल बरिसात  मे कतहु, भीतक घर बना क' ' देखियौ I

 नीक-अधलाह किछु कतहु जे बाजब, से काने-कान पसरबे करतै I
बदनामी सँ कहिया  धरि बाँचब, गुम्मो वरू  रहि क' देखियौ I

पुरल  छै  सभटा आस  ककर, दुनिया मे कहाँ कतहु   कहियो I
फाटल आञ्चर   सँ  आसक  गेंठी कहियो  फोलि क' ' देखियौ I

लोकक पैर  सँ  बाटक   पाथर,  सभ दिन  एहिना उडैत  रहतै I
किन्साईत   कोनो   हीरा  ने हो,  कखनो  उठा क' '  देखियौ I

कपड़जरू  फूल त' कांट  पर  पोसा क' माटिये मे  मेटैत  रहतै I
सौभाग्य हेतई ओकरो, कहियो आहाँ आँचर मे उठा क' देखियौ I

उठि क' जे  ठाढ़ो ने भ' सकल, कियै   मोन केयो  रखतै ओकरा I
खड़ी हम नित उचारैते छी, हमरो आँगन  आबि क' ' देखियौ I

***
कुमार मनोज कश्यप
5/8, ब्लॉक-I, न्यू मिंटो रोड हॉस्टल,
 मिंटो रोड कॉम्प्लेक्स, नई दिल्ली -110002
# 09810811850 , 011-23231873

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