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Monday, 24 October 2016

मैथिल बनू प्रज्वलित चिनगी

  || मैथिल बनू प्रज्वलित चिनगी||

छलहुँ गाछ केर जरिआठी अँह,आइ बनल छी फुनगी |
छलहुँ एकदिन धह –धह धधरा ,आइ पझाएल चिनगी |
मैथिल बनू प्रज्वलित चिनगी ||
छलहुँ ज्ञान विद्या केर सागर ,आइ बनल छी लघुतम गागर |
छलहुँ चेतना रूप समुज्ज्वल , सभठाँ पाबी आइ निरादर |
अपनेँ जेना तेना बीति गेलहुँ, कोना बीतत सन्तति केर जिनगी ?
मैथिल आइ बनल छी फुनगी |
हवन कुण्ड मे क्रांतिक घृत दय, अग्नि अतुल ज्वाला धधकाउ|
मिथिला राज्य प्राप्त करबा मे, पाछू पग नहि आब हटाउ|
आवश्यक तृण पवन योग सँ, चिनगी लहकी सुनगी |
बनल नहि रहू छौर तर चिनगी ||
मिथिला राज बनौने बिनु नहि ,चैन शान्ति सुख पाएब |
खेती आ उद्योग समिश्रित ,समृद्धि राज्य बनाएब |
आलस त्यागू काज मे लागू आब ने ताकू अलगी बलगी |
मैथिल बनू प्रज्वलित चिनगी ||
*****************मधुकर **************************


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