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Wednesday, 15 April 2020

दीप उत्सव सोहर गीत ।। रचना - कविता झा

दीप उत्सव सोहर गीत


कोन असुर जग पसर ल,
कहमा स आयल  रे
ललना रे ऐहन जतन सब ,
करिताहू असुर भग बितहूं  रे
    को रो ना असुर जग पसरल,
    चायना स आयल रे
   ललना रे दीप जराए हम ,
   रा खब कोरोणा भगा यब रे
लाब ह दीप सलाई की ,
सब मिली जराओल रे,
ललना रे एक जुट भय,
दीप लेसल की,
मोदी मन राखल रे
      
कविता झा

Sunday, 12 April 2020

मोनक प्रश्न

की कवियो सभक धर्म होइ छै ?
कि सभ कवि बेधर्मी होइ छै ?
हाँ हाँ ई जुनि कहि देब, कविक धर्म
हमरा कविक धर्म नहि
हमरा बुझैके अछि कविके घर्म
धर्म ! ओ धर्म
अहाँक पुरखाक घर्म
जे अहाँके वैष्णव बनेलक
जे अहाँके टीक रखब सिखेलक
जे अहाँके माय भगवतीक सेबक बनेलक
आ जे केकरो गायभक्क्षी बनेलक
ओ धर्म

किएक
अनायास ई प्रश्न किएक ?
आइ देख रहल छी
जाहि कविके दाढ़ी नै भेलैए
ओहो गड़ीया रहल अछि
धर्मके टीक आ चाननके
गड़ीया रहल अछि
धर्मक गप्प करै बलाके
गड़ीया रहल अछि
धर्मक स्थानके
आ धर्म देवीके

कमोबेस मैथिलीक कविक सभक
इहे चालि अछि
हाँ ! कियों चिन्हार
तँ कियों अनचिन्हार अछि
तें पुछए परल ई प्रश्न
की कवियो सभक धर्म होइ छै ?
कि सभ कवि बेधर्मी होइ छै ?
यदि बेधर्मी भेनाई अनिवार्य होय कविके
तँ हमहूँ अपन जनउ तोरि ली
टीक काटि
गड़ीयाबै लागू झा मिसरके
खए लागू पाया आ लेग
कवि बनी की नै
मन बुझए अबे की नै
मुदा अकादमी पुरस्कार
भेटत हमरे
सभ परहत हमरे
कर्मे नहि तँ कुकर्मे
सभ परहत हमरे ।
        *****
        जगदानन्द झा "मनु"
        मो० 9212 46 1006
        गाम पोस्ट- हरिपुर डीहटोल, मधुबनी

Tuesday, 25 September 2018

रमण दोहावली ।। रचनाकार - रेवती रमण झा "रमण"

                         || रमण दोहावली ||
                                        


    1. नाहि परखिए  कोऊ घट , मुख करिए अमृत पान ।
       "रमण" कनक घट हो सुरा , जीवन मृत्यु समान  ।।

    2. धन  बल  तन बल रूप बल , इच्छा  मन में नाही ।
        "रमण" विधाता ज्ञान एक  ,  भर देना घट माहि ।।

    3. घट - घट  महिमा राम की , हर घट  रामहि वास ।
        "रमण" तो साधे एक घट , है घट माहि विश्वास ।।

    4. सागर  गागर  दोउ  नहि  ,  ऊँच  नीच  की  बात ।
        एक  भरे  पनिहारीणी , "रमण"  एकै  वरसात ।।

    5. मृत्यु  जनम  जंजीर  है ,  कही  सुबह  तो  शाम ।
        "रमण" भ्रम पथ छारि के , जपिहो राधे श्याम ।।

    6. प्रभु से कछु नहि माँगिए  ,  मानिए उसकी बात ।
        "रमण"  तरसता  बुन्द  को , वो  देते  वरसात ।।

    7. जो सहत वही लहत है  ,  लहत वही जग जीत ।
       बैर - बैर को छारि के , "रमण" राख चित्त प्रीत ।।

    8. जो लिखना था लिख दिया , लिखने से किया होय ।
        रसना व्यंजन नहि चखे , "रमण" स्वाद को खोय ।।

                                 रचनाकार
  रेवती रमण झा "रमण"
mob- 9997313751