Maithili Sahasin Mahasabha
मंगलवार, 17 दिसंबर 2024
शुक्रवार, 22 नवंबर 2024
रविवार, 17 नवंबर 2024
बुधवार, 15 अप्रैल 2020
रविवार, 12 अप्रैल 2020
मोनक प्रश्न
की कवियो सभक धर्म होइ छै ?
कि सभ कवि बेधर्मी होइ छै ?
हाँ हाँ ई जुनि कहि देब, कविक धर्म
हमरा कविक धर्म नहि
हमरा बुझैके अछि कविके घर्म
धर्म ! ओ धर्म
अहाँक पुरखाक घर्म
जे अहाँके वैष्णव बनेलक
जे अहाँके टीक रखब सिखेलक
जे अहाँके माय भगवतीक सेबक बनेलक
आ जे केकरो गायभक्क्षी बनेलक
ओ धर्म
किएक
अनायास ई प्रश्न किएक ?
आइ देख रहल छी
जाहि कविके दाढ़ी नै भेलैए
ओहो गड़ीया रहल अछि
धर्मके टीक आ चाननके
गड़ीया रहल अछि
धर्मक गप्प करै बलाके
गड़ीया रहल अछि
धर्मक स्थानके
आ धर्म देवीके
कमोबेस मैथिलीक कविक सभक
इहे चालि अछि
हाँ ! कियों चिन्हार
तँ कियों अनचिन्हार अछि
तें पुछए परल ई प्रश्न
की कवियो सभक धर्म होइ छै ?
कि सभ कवि बेधर्मी होइ छै ?
यदि बेधर्मी भेनाई अनिवार्य होय कविके
तँ हमहूँ अपन जनउ तोरि ली
टीक काटि
गड़ीयाबै लागू झा मिसरके
खए लागू पाया आ लेग
कवि बनी की नै
मन बुझए अबे की नै
मुदा अकादमी पुरस्कार
भेटत हमरे
सभ परहत हमरे
कर्मे नहि तँ कुकर्मे
सभ परहत हमरे ।
*****
जगदानन्द झा "मनु"
मो० 9212 46 1006
गाम पोस्ट- हरिपुर डीहटोल, मधुबनी
कि सभ कवि बेधर्मी होइ छै ?
हाँ हाँ ई जुनि कहि देब, कविक धर्म
हमरा कविक धर्म नहि
हमरा बुझैके अछि कविके घर्म
धर्म ! ओ धर्म
अहाँक पुरखाक घर्म
जे अहाँके वैष्णव बनेलक
जे अहाँके टीक रखब सिखेलक
जे अहाँके माय भगवतीक सेबक बनेलक
आ जे केकरो गायभक्क्षी बनेलक
ओ धर्म
किएक
अनायास ई प्रश्न किएक ?
आइ देख रहल छी
जाहि कविके दाढ़ी नै भेलैए
ओहो गड़ीया रहल अछि
धर्मके टीक आ चाननके
गड़ीया रहल अछि
धर्मक गप्प करै बलाके
गड़ीया रहल अछि
धर्मक स्थानके
आ धर्म देवीके
कमोबेस मैथिलीक कविक सभक
इहे चालि अछि
हाँ ! कियों चिन्हार
तँ कियों अनचिन्हार अछि
तें पुछए परल ई प्रश्न
की कवियो सभक धर्म होइ छै ?
कि सभ कवि बेधर्मी होइ छै ?
यदि बेधर्मी भेनाई अनिवार्य होय कविके
तँ हमहूँ अपन जनउ तोरि ली
टीक काटि
गड़ीयाबै लागू झा मिसरके
खए लागू पाया आ लेग
कवि बनी की नै
मन बुझए अबे की नै
मुदा अकादमी पुरस्कार
भेटत हमरे
सभ परहत हमरे
कर्मे नहि तँ कुकर्मे
सभ परहत हमरे ।
*****
जगदानन्द झा "मनु"
मो० 9212 46 1006
गाम पोस्ट- हरिपुर डीहटोल, मधुबनी
मंगलवार, 25 सितंबर 2018
रमण दोहावली ।। रचनाकार - रेवती रमण झा "रमण"
|| रमण दोहावली ||
1. नाहि परखिए कोऊ घट , मुख करिए अमृत पान ।
"रमण" कनक घट हो सुरा , जीवन मृत्यु समान ।।
2. धन बल तन बल रूप बल , इच्छा मन में नाही ।
"रमण" विधाता ज्ञान एक , भर देना घट माहि ।।
3. घट - घट महिमा राम की , हर घट रामहि वास ।
"रमण" तो साधे एक घट , है घट माहि विश्वास ।।
4. सागर गागर दोउ नहि , ऊँच नीच की बात ।
एक भरे पनिहारीणी , "रमण" एकै वरसात ।।
5. मृत्यु जनम जंजीर है , कही सुबह तो शाम ।
"रमण" भ्रम पथ छारि के , जपिहो राधे श्याम ।।
6. प्रभु से कछु नहि माँगिए , मानिए उसकी बात ।
"रमण" तरसता बुन्द को , वो देते वरसात ।।
7. जो सहत वही लहत है , लहत वही जग जीत ।
बैर - बैर को छारि के , "रमण" राख चित्त प्रीत ।।
8. जो लिखना था लिख दिया , लिखने से किया होय ।
रसना व्यंजन नहि चखे , "रमण" स्वाद को खोय ।।
रचनाकार
1. नाहि परखिए कोऊ घट , मुख करिए अमृत पान ।
"रमण" कनक घट हो सुरा , जीवन मृत्यु समान ।।
2. धन बल तन बल रूप बल , इच्छा मन में नाही ।
"रमण" विधाता ज्ञान एक , भर देना घट माहि ।।
3. घट - घट महिमा राम की , हर घट रामहि वास ।
"रमण" तो साधे एक घट , है घट माहि विश्वास ।।
4. सागर गागर दोउ नहि , ऊँच नीच की बात ।
एक भरे पनिहारीणी , "रमण" एकै वरसात ।।
5. मृत्यु जनम जंजीर है , कही सुबह तो शाम ।
"रमण" भ्रम पथ छारि के , जपिहो राधे श्याम ।।
6. प्रभु से कछु नहि माँगिए , मानिए उसकी बात ।
"रमण" तरसता बुन्द को , वो देते वरसात ।।
7. जो सहत वही लहत है , लहत वही जग जीत ।
बैर - बैर को छारि के , "रमण" राख चित्त प्रीत ।।
8. जो लिखना था लिख दिया , लिखने से किया होय ।
रसना व्यंजन नहि चखे , "रमण" स्वाद को खोय ।।
रचनाकार
रेवती रमण झा "रमण"
mob- 9997313751
सोमवार, 24 सितंबर 2018
रमण दोहावली । । रचनाकार - रेवती रमण झा "रमण"
|| रमण दोहावली ||
1. "रमण" धरम की झोपड़ी , पाप की तीली एक ।
चले मारुत उन्चास जँह , जारे नगर अनेक ।।
2. तिरिया हो व्यभिचारिणी , सन्तति हो नासूर ।
कहे "रमण" जंजाल को , छोर कही जा दूर ।।
3. पति परमेश्वर छारि के , नामर्दा केर साथ ।
"रमण" केतनहुँ जतन कर , कछु नहिआबै हाथ ।।
4. शक्त्ति स्वरूपा नारि सती , कुल्टा नरक का द्वार ।
"रमण" धरण फूले - फले , अधमी कुल संहार ।।
5. नख शिख दंता नारि गुण , सोहे जब तक ठाम ।
"रमण" विंलग पथ होय के , एक न सोहे कुठाम ।।
6. बेटी हो तो , हो भली , भली न हो मर जाय ।
"रमण" मानेमर्याद से , दोनों कुल तरजाय ।।
7. आई आँधी जोर की , चली सुबह से शाम ।
पत्ता - पत्ता रे झड़ गया , लटका डाली आम ।।
8. पाहन की भई पैड़ी , पाहन का भगवान ।
एक पैरहि एक सिर नवे , दोनों सिला समान ।।
रचनाकार
रेवती रमण झा "रमण"
mob - 9997313751
1. "रमण" धरम की झोपड़ी , पाप की तीली एक ।
चले मारुत उन्चास जँह , जारे नगर अनेक ।।
2. तिरिया हो व्यभिचारिणी , सन्तति हो नासूर ।
कहे "रमण" जंजाल को , छोर कही जा दूर ।।
3. पति परमेश्वर छारि के , नामर्दा केर साथ ।
"रमण" केतनहुँ जतन कर , कछु नहिआबै हाथ ।।
4. शक्त्ति स्वरूपा नारि सती , कुल्टा नरक का द्वार ।
"रमण" धरण फूले - फले , अधमी कुल संहार ।।
5. नख शिख दंता नारि गुण , सोहे जब तक ठाम ।
"रमण" विंलग पथ होय के , एक न सोहे कुठाम ।।
6. बेटी हो तो , हो भली , भली न हो मर जाय ।
"रमण" मानेमर्याद से , दोनों कुल तरजाय ।।
7. आई आँधी जोर की , चली सुबह से शाम ।
पत्ता - पत्ता रे झड़ गया , लटका डाली आम ।।
8. पाहन की भई पैड़ी , पाहन का भगवान ।
एक पैरहि एक सिर नवे , दोनों सिला समान ।।
रचनाकार
रेवती रमण झा "रमण"
mob - 9997313751
रविवार, 2 सितंबर 2018
रमण दोहावली ।। रचनाकार - रेवती रमण झा "रमण"
|| रमण दोहावली ||
1. पाप किया है जतन से , फल से क्यो कतराय ।
"रमण" जीवन पतित पे , कोउ न होत सहाय ।।
2. जो मिट्टी में डाल दिया , स्वर्ण रतन अनमोल ।
चुन-चुन के रे भरलिया , देख तिजोरी खोल ।।
3. गैया काटे कसाई , मैया काट कपूत ।
"रमण" काटि हे पाप को , नाहि दिखे यमदूत ।।
4. मुझमे तो मकरंद है , ना कर कुसुम बखान ।
गुण अवगुण को जानि के , गावत सुयश सुजान ।।
5. जाहि आँख पानी मुआ , मुआ विवेक विचार ।
अधमहि संग ना साधिए , "रमण" बड़ा संसार ।।
6. एक पख बढ़त,घटत एकहि,रहत न रूप हि समान ।
"रमण" काल के चक्र से , हो निर्धन धनवान ।।
7. ग्रह मंडल नभ एक - एक , है सारे गतिमान ।
उसके आगे काल गति , विधि का प्रबल विधान ।।
8. मोक्ष - धाम की लालसा , राग द्वेष चित माहि ।
जतन केतनो करि फिरे , धरम मिले जो नाही ।।
रचनाकार
रेवती रमण झा " रमण "
1. पाप किया है जतन से , फल से क्यो कतराय ।
"रमण" जीवन पतित पे , कोउ न होत सहाय ।।
2. जो मिट्टी में डाल दिया , स्वर्ण रतन अनमोल ।
चुन-चुन के रे भरलिया , देख तिजोरी खोल ।।
3. गैया काटे कसाई , मैया काट कपूत ।
"रमण" काटि हे पाप को , नाहि दिखे यमदूत ।।
4. मुझमे तो मकरंद है , ना कर कुसुम बखान ।
गुण अवगुण को जानि के , गावत सुयश सुजान ।।
5. जाहि आँख पानी मुआ , मुआ विवेक विचार ।
अधमहि संग ना साधिए , "रमण" बड़ा संसार ।।
6. एक पख बढ़त,घटत एकहि,रहत न रूप हि समान ।
"रमण" काल के चक्र से , हो निर्धन धनवान ।।
7. ग्रह मंडल नभ एक - एक , है सारे गतिमान ।
उसके आगे काल गति , विधि का प्रबल विधान ।।
8. मोक्ष - धाम की लालसा , राग द्वेष चित माहि ।
जतन केतनो करि फिरे , धरम मिले जो नाही ।।
रचनाकार
रेवती रमण झा " रमण "
मंगलवार, 3 जुलाई 2018
मिथिला क्रान्ति सन्देश ।। रचनाकार - रेवती रमण झा " रमण "
|| मिथिला क्रान्ति सन्देश ||
घायल नहिं खाली भाषा
पौरुषे भेल अछि घायल ।
क्रान्ति - वाहिनी कफन बान्हि
ललकार दैत अछि आयल ।
पराधीनहि जे रहि कS जीबैए
भाषा अनके जे सब दिन बजैए
ओ अइ रखने अपन वियर्थ जीवन
द्वारि अनकर जे सबदिन निपैए
पराधीनहि जे.......
मातृ-स्नेहके जे बिसरि गेल अइ
अपन अधिकारर्सँ जे ससरि गेल अइ
ओकर कुकुरो सं वत्तर छै जीवन
सतत् अनकर जे तीमन चटैए
पराधीनहि जे.......
की भरोसे करू संग कक्कर देतै
जे ने मायक भेलै ओकि अनकर हेतै
सुधा-सरिता बिसरि कS अपन मैथिलीक
घोरि माहुर जे अपने पिबेए
पराधीनहि जे.......
चुप मिथिला के वासी कियक भेल छी
मातृ भाषा कि अप्पन बिसरि गेल छी
दुष्ट देलक दखल यौ अहाँक घरमे
गीत देखू विजय केर गवैए
पराधीनहि जे.......
ताकू एम्हरो,ककर आँखि नोरे भरल
एक अवला बेचारी बिपति में पड़ल
"रमण" देखू अतय लाख संतति जकर
चुप करै लै ने एक्को अबैए
पराधीनहि जे रहि कS जीबैए
भाषा अनकर जे सब दिन बजैए
रचनाकार
रेवती रमण झा "रमण"
बुधवार, 30 मई 2018
मंजिल दूर संग नहि पाथे ।। "निर्गुन पराती" रचयिता - रेवती रमण झा" रमण "
|| निर्गुन पराती ||
" मंजिल दूर संग नहि पाथे "
मुसाफिर चेतहुँ एहु घरी ।
मंजिल दूर संग नहि पाथे
बान्धि लेहुँ गठरी ।। मुसाफिर....
यह मणि-प्राण पुरत दिन जबहीं
रहत न एक घरी ।
रतन स्वर्ण धन महल अटारी
सब सुनसान परी ।। मुसाफिर...
अर्धाङ्गिंन अधिकार अदा करि
रुदन करत देहरी ।
मातु पिता सुत सगा सम्बन्धित
स्मसान नगरी ।। मुसाफिर....
जो मद पाय रतन तन सुन्दर
जरत सो जस लकड़ी ।
"रमण" कठिन पथ पथिक न पाबय
चिन्ता जाहि परी ।। मुसाफिर....
रचयिता
रेवती रमण झा " रमण "
" मंजिल दूर संग नहि पाथे "
मुसाफिर चेतहुँ एहु घरी ।
मंजिल दूर संग नहि पाथे
बान्धि लेहुँ गठरी ।। मुसाफिर....
यह मणि-प्राण पुरत दिन जबहीं
रहत न एक घरी ।
रतन स्वर्ण धन महल अटारी
सब सुनसान परी ।। मुसाफिर...
अर्धाङ्गिंन अधिकार अदा करि
रुदन करत देहरी ।
मातु पिता सुत सगा सम्बन्धित
स्मसान नगरी ।। मुसाफिर....
जो मद पाय रतन तन सुन्दर
जरत सो जस लकड़ी ।
"रमण" कठिन पथ पथिक न पाबय
चिन्ता जाहि परी ।। मुसाफिर....
रचयिता
रेवती रमण झा " रमण "
मंगलवार, 8 मई 2018
ई , युगे अइ छुतहर ।। रचनाकार - रेवती रमण झा " रमण "
|| ई , युगे अइ छुतहर ||
ई , युगे अइ छुतहर
मेटत के अकरा ।
बुधियारक बाप सब
बुद्धि देब केकरा ।।
अइ नीक होनिहारी
त बैसू दलान पर ।
किछु कियो कहय त
राखू नै कान पर ।।
सब लुलकारि देत
जुनि पढू फकरा ।। ई युगे-----------
घरनी जे कहैया
चुपचाप करु ।
गीताक ज्ञान ध्यान
ताक पर धरु ।।
वैह लुलकारि लेत
कहबै गय जेकरा ।। ई युगे-----------
पूतक बात सब
माथ पर राखु ।
ओहि सं आगाँ यौ
किछु नै भाषू ।।
"रमण" के सुनब नै
त बनिजायब बकरा ।। ई युगे---------
रचनाकार
रेवती रमण झा " रमण "
ई , युगे अइ छुतहर
मेटत के अकरा ।
बुधियारक बाप सब
बुद्धि देब केकरा ।।
अइ नीक होनिहारी
त बैसू दलान पर ।
किछु कियो कहय त
राखू नै कान पर ।।
सब लुलकारि देत
जुनि पढू फकरा ।। ई युगे-----------
घरनी जे कहैया
चुपचाप करु ।
गीताक ज्ञान ध्यान
ताक पर धरु ।।
वैह लुलकारि लेत
कहबै गय जेकरा ।। ई युगे-----------
पूतक बात सब
माथ पर राखु ।
ओहि सं आगाँ यौ
किछु नै भाषू ।।
"रमण" के सुनब नै
त बनिजायब बकरा ।। ई युगे---------
रचनाकार
रेवती रमण झा " रमण "
बुधवार, 2 मई 2018
हम नै कतौ भागै छी यौ ।। गीतकार - रेवती रमण झा " रमण "
|| हम नै कतौ भागै छी यौ ||
" गीत "
" गीत "
लोक लाज के ध्यान राखि कय
प्रियतम गोर लागैछी यौ ।
आहाँ जुनि अतेक उताहुल होइयौ
हम नै कतौ भागै छी यौ ।।
देखु मोतिक माला टुटल
फुटल हाथक चूड़ी यौ ।
अतेक राति भरि कष्ट के सहलौ
हम छी कोन कसूरी यौ
निन्द सं आँखि में दर्द भरैया
हम भरि राति जगैछी यौ ।। आहाँ जुनि......
कामातुर आवेश में परि कय
सगरो गात के तोरि देलौ
नवल उरोज सरोज कली दुहुँ
निर्दय जेकाँ मड़ोरि देलौ
दाँते दुनू कपोल काटि कय
लालेलाल करै छी यौ ।। आहाँ जुनि......
अधरामृत मधु पीवि ठोर के
आहाँ सुखयलौ लाली यौ
गुप्त भेद संकेत करैया
टूटल कानक बाली यौ
भोर भेल अछि बाजल कौआ
कानबात नै दैछि यौ ।। आहाँ जुनि......
संगक सखी परिहास करत सब
तकरो तनिक बिचार करू
बात राति भरि आहाँ के मानल
अते विनय स्वीकार करु
"रमण" सुमन केर सूक्ष्म पराग हूँ
कियक जियान करैछी यौ ।। आहाँ जुनि...
गीतकार
रेवती रमण झा " रमण "
शुक्रवार, 27 अप्रैल 2018
तोहर बाजब बड़ अनमोल ।। गीतकार - रेवती रमण झा " रमण "
|| गीत||
|| तोहर बाजब वर अनमोल ||
लड़का - तोहर बाजब वर अनमोल
अनमन कोयली सनके बोल
गै तोहर की ? नाम छौ ।।
लड़की - हम छी नदिया के हिलकोर
हमर अइ कतौ ओर ने छोर
कि चन्दा नाम अइ ।। कि चन्दा......
लड़का - चुपके सं निकलै छै घर सं
घेला काँख दबाक गे
साँझ प्रात तू पैर रोपै छै
पोखरिक भीरे जा कय गे
देतौ के पानिक तोहर मोल
गंगा की हेती अनमोल
तोहर की ? नाम छौ ।। तोहर......
उल्टा आँचर उल्टा पाटी
उलट पलट तोर बाजब गे
ई हमरा वर नीक लगैया
नव नव तोहर साजब गे
खन - खन चुड़िक मधुर बोल
खोलौ सबटा तोहर पोल
गे तोहर की ? नाम छौ ।। तोहर.....
चिड़इक पाँखि सनक चंचल
ई तोहर दुनु नैना गे
पलक पलंगरी पर छन भरि लय
चाही हमरा रैना गे
लड़की - तोहर बाजब अनमन ओल
जेना बिनु काजक फूटल ढोल
रै तोहर की ? नाम छौ ।। रै तोहर.......
गीतकार
रेवती रमण झा " रमण "
मंगलवार, 24 अप्रैल 2018
माय विनु नेह केकर चित जागल ।। रचनाकार - रेवती रमण झा " रमण "
|| माय विनु नेह केकर चित जागल ||
माय विनु नेह केकर चित जागल ।
सरबस प्रेम वृथा विनु तोहर
जाहि प्रीत विनु पागल ।। माय.........
मल त्यागल आँचर पर सदिखन
तों हँसि ताहि पखारल ।
कयलहुँ कत अपराध माय तुव
चित दुख सबहि बिसारल ।। माय......
दारा अरु परिवार सकल जन
सब सम्पदा निहारल ।
सब सम्पदा निहारल ।
माय एक तुव अंग निरेखल
हुलसि गोद भरि पारल ।। माय.........
सहि दसमासहुँ वेदन स्वांस धरि
कष्ट असह अवधारल ।
कष्ट असह अवधारल ।
"रमण" सधा नहि सकय तोहर ऋण
पुत्र अधम जग तारल।। माय..........
पुत्र अधम जग तारल।। माय..........
रचनाकार
रेवती रमण झा " रमण "
रविवार, 22 अप्रैल 2018
प्रियतम आई अयथिन की मोर ।। रचयिता - रेवती रमण झा " रमण "
|| प्रियतम आई अयथिन की मोर ||
कखन सं कौआ कुचड़ि रहल अइ
देखहिन भोरे भोर ।
गै प्रियतम आइ अयथिन की मोर ।।
प्रतिपल पंथ निहारि रहल छी
रहि - रहि सगुन उचारि रहल छी
बहुतो बात बिचारि रहल छी
नाचि रहल मनमोर । गै प्रियतम.......
गाइक गोवर नीपल अंगना
रुनझुन - रुनझुन बाजल कंगना
पायल के झनकार झनाझन
खूब मचावय शोर ।। गै प्रियतम........
वर व्यंजन बहु विधि रचि साजल
अनुपम प्रवल प्रेम चित जागल
कौआँ तरल पड़ोरे सजनी
आर तरल तिलकोर ।। गै प्रियतम.......
रचि सोलह श्रृंगार केने छी
बत्तिस अभरन धारि लेने छी
रंजित नयन अधर पुट पाँडरि
लाले पहिर पटोर ।। गै प्रियतम......
रचयिता
रेवती रमण झा " रमण "
कखन सं कौआ कुचड़ि रहल अइ
देखहिन भोरे भोर ।
गै प्रियतम आइ अयथिन की मोर ।।
प्रतिपल पंथ निहारि रहल छी
रहि - रहि सगुन उचारि रहल छी
बहुतो बात बिचारि रहल छी
नाचि रहल मनमोर । गै प्रियतम.......
गाइक गोवर नीपल अंगना
रुनझुन - रुनझुन बाजल कंगना
पायल के झनकार झनाझन
खूब मचावय शोर ।। गै प्रियतम........
वर व्यंजन बहु विधि रचि साजल
अनुपम प्रवल प्रेम चित जागल
कौआँ तरल पड़ोरे सजनी
आर तरल तिलकोर ।। गै प्रियतम.......
रचि सोलह श्रृंगार केने छी
बत्तिस अभरन धारि लेने छी
रंजित नयन अधर पुट पाँडरि
लाले पहिर पटोर ।। गै प्रियतम......
रचयिता
रेवती रमण झा " रमण "
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