|| रमण दोहावली ||
1. "रमण" धरम की झोपड़ी , पाप की तीली एक ।
चले मारुत उन्चास जँह , जारे नगर अनेक ।।
2. तिरिया हो व्यभिचारिणी , सन्तति हो नासूर ।
कहे "रमण" जंजाल को , छोर कही जा दूर ।।
3. पति परमेश्वर छारि के , नामर्दा केर साथ ।
"रमण" केतनहुँ जतन कर , कछु नहिआबै हाथ ।।
4. शक्त्ति स्वरूपा नारि सती , कुल्टा नरक का द्वार ।
"रमण" धरण फूले - फले , अधमी कुल संहार ।।
5. नख शिख दंता नारि गुण , सोहे जब तक ठाम ।
"रमण" विंलग पथ होय के , एक न सोहे कुठाम ।।
6. बेटी हो तो , हो भली , भली न हो मर जाय ।
"रमण" मानेमर्याद से , दोनों कुल तरजाय ।।
7. आई आँधी जोर की , चली सुबह से शाम ।
पत्ता - पत्ता रे झड़ गया , लटका डाली आम ।।
8. पाहन की भई पैड़ी , पाहन का भगवान ।
एक पैरहि एक सिर नवे , दोनों सिला समान ।।
रचनाकार
रेवती रमण झा "रमण"
mob - 9997313751
1. "रमण" धरम की झोपड़ी , पाप की तीली एक ।
चले मारुत उन्चास जँह , जारे नगर अनेक ।।
2. तिरिया हो व्यभिचारिणी , सन्तति हो नासूर ।
कहे "रमण" जंजाल को , छोर कही जा दूर ।।
3. पति परमेश्वर छारि के , नामर्दा केर साथ ।
"रमण" केतनहुँ जतन कर , कछु नहिआबै हाथ ।।
4. शक्त्ति स्वरूपा नारि सती , कुल्टा नरक का द्वार ।
"रमण" धरण फूले - फले , अधमी कुल संहार ।।
5. नख शिख दंता नारि गुण , सोहे जब तक ठाम ।
"रमण" विंलग पथ होय के , एक न सोहे कुठाम ।।
6. बेटी हो तो , हो भली , भली न हो मर जाय ।
"रमण" मानेमर्याद से , दोनों कुल तरजाय ।।
7. आई आँधी जोर की , चली सुबह से शाम ।
पत्ता - पत्ता रे झड़ गया , लटका डाली आम ।।
8. पाहन की भई पैड़ी , पाहन का भगवान ।
एक पैरहि एक सिर नवे , दोनों सिला समान ।।
रचनाकार
रेवती रमण झा "रमण"
mob - 9997313751
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