|| मिथिला क्रान्ति सन्देश ||
घायल नहिं खाली भाषा
पौरुषे भेल अछि घायल ।
क्रान्ति - वाहिनी कफन बान्हि
ललकार दैत अछि आयल ।
पराधीनहि जे रहि कS जीबैए
भाषा अनके जे सब दिन बजैए
ओ अइ रखने अपन वियर्थ जीवन
द्वारि अनकर जे सबदिन निपैए
पराधीनहि जे.......
मातृ-स्नेहके जे बिसरि गेल अइ
अपन अधिकारर्सँ जे ससरि गेल अइ
ओकर कुकुरो सं वत्तर छै जीवन
सतत् अनकर जे तीमन चटैए
पराधीनहि जे.......
की भरोसे करू संग कक्कर देतै
जे ने मायक भेलै ओकि अनकर हेतै
सुधा-सरिता बिसरि कS अपन मैथिलीक
घोरि माहुर जे अपने पिबेए
पराधीनहि जे.......
चुप मिथिला के वासी कियक भेल छी
मातृ भाषा कि अप्पन बिसरि गेल छी
दुष्ट देलक दखल यौ अहाँक घरमे
गीत देखू विजय केर गवैए
पराधीनहि जे.......
ताकू एम्हरो,ककर आँखि नोरे भरल
एक अवला बेचारी बिपति में पड़ल
"रमण" देखू अतय लाख संतति जकर
चुप करै लै ने एक्को अबैए
पराधीनहि जे रहि कS जीबैए
भाषा अनकर जे सब दिन बजैए
रचनाकार
रेवती रमण झा "रमण"
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