ठाढ़ि चानन तर कामिनि रे
लीखल दुई पाँती ।
दिन दुगुन दुइ मातलि रे
डरपत बिनु वाती ।।
प्राण हमर नहि जीयुत रे
विरहिन भेल छाती ।
सेज भवन कछु सोहन रे
प्रियतम विनु राती ।।
कोन विधि कुशल अपन कहूरे
लीखब केहि भाँती ।
कत अपराध हमर अछि रे
नहि वरसल स्वाती ।।
"रमण" रभसि रति रत नहि रे
रहि गेल संघाती ।
भोर बसंत सुनल नहि रे
नहि साँझ पराती ।।
रचयिता
रेवती रमण झा " रमण "
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