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Tuesday, 26 September 2017

उपासना

कल्पना झा ★
एकटा छथि,
माँ जगजननी महाकाली !
सभक रक्षनार्थ,
दुखिया के दुःखहारिणी
पालनकारिणि महागौड़ी
के नहि जनैछ हिनक महिमा..
माँ जगदम्बा !
तें की ?
ओहो त स्त्रिये छथि ..
ओ त भवभंजनि महाकालिका थिकीह
हम सभ हुनका अबला कहबनि !
नहि ने ?
हुनक जीबन कि अकंटक छलन्हि ?
साक्षात् रणचण्डी। !
त की ?
हम सभ सदति ..
कथमपि नहिं .
आख्यान ब्याख्यान भरल परल अछि ,
पूजा अर्चना क संग ...
हुनक कंटकमय गाथा सँ ..
जीबन जिबाक प्रेरणा लैत छी ।
हुनक कंटकमय गाथाक ...
श्रवण मनन करैत छी ।
तअ कहू त कियेक नहि ..
हुनकहि सँ ..
एहि बातक बिचार केने बिना
कियेक कनियों दुःख सँ ..
अति दुःखी भए ...
अपन आराध्या क आगू ...
गिरगिराइत रहैत छी ,
जे ओ अपराजिता ..
महाकाली माए
कतेक द्रवित हेतीह ..
हमर सभक अकर्मण्यता पर ,
तअ आऊ ..
कतेक क्षुब्ध हेतीह ,
पूजा उपासना क
हम सभ मिलि प्रण करी
जानबा , बुझबाक ...

अनर्गल अर्थ जानि ,
पूजा उपासना क सही अर्थ


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