मन्त्र ने जानी तन्त्र ने जानी ,नहि स्तुति करबा के ज्ञान ,
नहि जानी हम करब आवाहन ,नहि अवगति करबा के ध्यान |
हम अहाँक स्तोत्र कथा सँ, मातु सर्वथा छी अनजान ;
नहि मुद्रा सँ हमरा परिचय , केवल करब विलापक ज्ञान |
हम तँ बात एकेटा जानी , ग्रहण जे जननी करय शरण |
माँ जगदम्वे चरण शरण ||
कल्याणी उद्धार कारिणी ,नहि विधान पूजा धारण |
,धनक अभाव स्वभाव आलसी ,कएल ने पाठक सम्पादन |
त्रुटि भेल चरणक सेवा मे ,क्षमा करब हे जग जननी !
पूत कपूत बनब सम्भव अछि ,मात कुमाता नहि केहुखन ?
माँ जगदम्वे चरण शरण ||
पुत्र अहाँके सरल स्वभावक ,पृथ्वी पर बहुतो जग जननी !
हम छी चपल स्वभावक चंचल ,विरल पुत्र हम छी अवणी,
किन्तु त्याग नहि हमर उचित अछि ,नहि जानी एहि केर कारण ?
पूत कपूत बनब सम्भव अछि ,मात कुमाता नहि केहुखन |
माँ जगदम्वे !चरण शरण ||
चरणक सेवा कएल ने कहियो ,नहि धन केलहुँ हम अर्पण ,
स्नेह अहाँ के तद्यपि अनुपम, हम जानी एहि के कारण ,
पुत्र अधम पर स्नेह ममत्वक ,अहाँ कएल निश्चय धारण ,
पूत कपूत बनब सम्भव अछि ,मात कुमाता नहि केहुखन |
माँ जगदम्वे चरण शरण ||
मातु पार्वती हम तँ केलहुँ ,अछि माँ अनेक देवक सेवन ,
वर्ष पचासी आब ने सम्भव ,हमरा सँ सबहक पूजन ?
रहल आश नहि हमरा ककरो, तेँ धेलहुँ अछि अहँक शरण ,
अहूँ कृपा नहि करब हे अम्वे! तँ जाएब पुनि ककर शरण ?
माँ जगदम्वे चरण शरण ||
अहँक मन्त्र केर एको अक्षर ,अधम सँ अधमक कान समाय ,
तँ चांडालो केर मुख निकसय ,वाणी मधुरक उच्चारण ,
दीनो पाबि लैत अछि वैभव ,मंत्राक्षर जे करय श्रवण ,
जप तप अहँक करय विधि पूर्वक ,गति मति प्राप्त विलक्षण |
माँ जगदम्वे चरण शरण ||
अंग लपेटल चिता भस्म छन्हि ,विषम हलाहल अछि भोजन ,
नग्न दिगम्बर माथ जटा छन्हि ,कंठ वासुकी आभूषण ,
भिक्षा पात्र कपाल हाथ मे, जगदीशक पदवी धारण ,
ई महत्व शिव केँ अछि भेटल , अहींक पाणिग्रहणक कारण |
माँ जगदम्वे चरण शरण ||
चन्द्रमुखी हम सत्य कहै छी ,नहि हमरा मोक्षक ईच्छा ,
नहि अभिलाषा आब जगत मे,प्राप्त करी हम वैभव धन ,
नहि विज्ञानक ज्ञान अपेक्षा , नहि सुख भोगक आकांक्षा ,
हमर याचना मातु एकेटा ,नाम जपैत रही जीवन |
माँ जगदम्वे चरण शरण ||
माँ श्यामा हम विधि पूर्वक नहि ,कएल अहाँ के आराधन ,
हम केलहुँ अपराध अनेको , हृदय कठोर भाव चिन्तन ,
किंचित कृपा दृष्टि हमरा पर, प्राप्त अहाँ के अवलम्वन,
दयामयी ई अहींक योग्य अछि ,अपन कुपुत्रो देब शरण |
माँ जगदम्वे चरण शरण ||
हे महेश्वरी ! करुणा सागर ,आफद फँसि केलहुँ सुमिरण ,
शठता हमर क्षमा करु जननी , नहि केलहुँ पद के सेवन ,
ब्यर्थ गमाएल काल स्मरण ,केलहुँ नहि हम भरि जीवन ,
भूखल प्यासें पीड़ीत बालक करय मात्र माएक सुमिरन |
माँ जगदम्वे चरण शरण ||
तद्यपि कृपा अहाँ के पाबी ,नहि कोनो आश्चर्यक बात ?
पुत्र करय अपराध घनेरो ,तदपि उपेक्षा करथि ने मात ,
हमर समान पातकी जग नहि ,पाप हारिणी नहि अहाँ सन ,
उचित बुझी से करी हे अम्वे ! हम मधुकर छी मातृ शरण |
माँ जगदम्वे ! चरण शरण ||
*****************मधुकर **************************
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