एकटा छथि,माँ जगजननी महाकाली !सभक रक्षनार्थ,दुखिया के दुःखहारिणीपालनकारिणि महागौड़ीके नहि जनैछ हिनक महिमा..माँ जगदम्बा !तें की ?ओहो त स्त्रिये छथि ..ओ त भवभंजनि महाकालिका थिकीहहम सभ हुनका अबला कहबनि !नहि ने ?हुनक जीबन कि अकंटक छलन्हि ?साक्षात् रणचण्डी। !त की ?हम सभ सदति ..
कथमपि नहिं .आख्यान ब्याख्यान भरल परल अछि ,पूजा अर्चना क संग ...हुनक कंटकमय गाथा सँ ..जीबन जिबाक प्रेरणा लैत छी ।हुनक कंटकमय गाथाक ...श्रवण मनन करैत छी ।तअ कहू त कियेक नहि ..हुनकहि सँ ..एहि बातक बिचार केने बिनाकियेक कनियों दुःख सँ ..अति दुःखी भए ...अपन आराध्या क आगू ...गिरगिराइत रहैत छी ,जे ओ अपराजिता ..महाकाली माएकतेक द्रवित हेतीह ..हमर सभक अकर्मण्यता पर ,तअ आऊ ..कतेक क्षुब्ध हेतीह ,पूजा उपासना कहम सभ मिलि प्रण करीजानबा , बुझबाक ...
अनर्गल अर्थ जानि ,पूजा उपासना क सही अर्थ
Maithili Sahasin Mahasabha
Tuesday, 26 September 2017
उपासना
Thursday, 21 September 2017
कलशस्थापन
शुभ संकल्पक कलशस्थापन !
तन केर घट मे ज्ञानक जल दय , उत्कर्षक अभिनव पल्लव दय ,
विजयक जव केँ कर्म वालुका ,धी विद्या संग मे आरोपण |
शुभ संकल्पक कलशस्थापन ||
सदाचार केर द्रव्य समर्पित ,शुभ विचार के फल कय अर्पित ,
लालित्यक हो वस्त्र आवरण ,एकताक माला हो गुम्फन |
शुभ संकल्पक कलशस्थापन ||
सुभग मन्त्र कर्मक उत्प्रेरण ,प्राणी केर प्रकाशमय जीवन ,
सुख संतोष प्राप्त हो अनुखन ,दीपक ज्योति विकास किरण |
शुभ संकल्पक कलशस्थापन ||
करुणा कृपा आ त्याग भावना ,अपना लय अत्यल्प कामना ,
पर सुख जनहित केर कल्पना ,अनुरागक हो भाव प्रदर्शन |
शुभ संकल्पक कलशस्थापन ||
ममतामयि माताक मूर्ति हो ,सुभग याचना केर पूर्ति हो,
जीवन रण विजयक स्फूर्ति हो ,मंगल मोदक शरण वरण |
शुभ संकल्पक कलशस्थापन ||
मानस उपजय हीन भाव नहि,अशुभ अमंगल केर प्रभाव नहि,
सत्य अहिंसा सँ दुराव नहि ,शक्ति युक्तिमय मानव जीवन |
शुभ संकल्पक कलशस्थापन ||
स्वाहा भ्रष्टाचार हवन कए, नारी मातृस्वरूप नमन कए ,
करू स्तवन शक्तिक मधुकर ,आत्मभाव जीवक प्रतिपालन |
शुभ संकल्पक कलशस्थापन ||
*******************मधुकर **************
तन केर घट मे ज्ञानक जल दय , उत्कर्षक अभिनव पल्लव दय ,
विजयक जव केँ कर्म वालुका ,धी विद्या संग मे आरोपण |
शुभ संकल्पक कलशस्थापन ||
सदाचार केर द्रव्य समर्पित ,शुभ विचार के फल कय अर्पित ,
लालित्यक हो वस्त्र आवरण ,एकताक माला हो गुम्फन |
शुभ संकल्पक कलशस्थापन ||
सुभग मन्त्र कर्मक उत्प्रेरण ,प्राणी केर प्रकाशमय जीवन ,
सुख संतोष प्राप्त हो अनुखन ,दीपक ज्योति विकास किरण |
शुभ संकल्पक कलशस्थापन ||
करुणा कृपा आ त्याग भावना ,अपना लय अत्यल्प कामना ,
पर सुख जनहित केर कल्पना ,अनुरागक हो भाव प्रदर्शन |
शुभ संकल्पक कलशस्थापन ||
ममतामयि माताक मूर्ति हो ,सुभग याचना केर पूर्ति हो,
जीवन रण विजयक स्फूर्ति हो ,मंगल मोदक शरण वरण |
शुभ संकल्पक कलशस्थापन ||
मानस उपजय हीन भाव नहि,अशुभ अमंगल केर प्रभाव नहि,
सत्य अहिंसा सँ दुराव नहि ,शक्ति युक्तिमय मानव जीवन |
शुभ संकल्पक कलशस्थापन ||
स्वाहा भ्रष्टाचार हवन कए, नारी मातृस्वरूप नमन कए ,
करू स्तवन शक्तिक मधुकर ,आत्मभाव जीवक प्रतिपालन |
शुभ संकल्पक कलशस्थापन ||
*******************मधुकर **************
Monday, 11 September 2017
देव्यपराधक्षमापन स्तोत्रम् क छायानुवाद
मन्त्र ने जानी तन्त्र ने जानी ,नहि स्तुति करबा के ज्ञान ,
नहि जानी हम करब आवाहन ,नहि अवगति करबा के ध्यान |
हम अहाँक स्तोत्र कथा सँ, मातु सर्वथा छी अनजान ;
नहि मुद्रा सँ हमरा परिचय , केवल करब विलापक ज्ञान |
हम तँ बात एकेटा जानी , ग्रहण जे जननी करय शरण |
माँ जगदम्वे चरण शरण ||
कल्याणी उद्धार कारिणी ,नहि विधान पूजा धारण |
,धनक अभाव स्वभाव आलसी ,कएल ने पाठक सम्पादन |
त्रुटि भेल चरणक सेवा मे ,क्षमा करब हे जग जननी !
पूत कपूत बनब सम्भव अछि ,मात कुमाता नहि केहुखन ?
माँ जगदम्वे चरण शरण ||
पुत्र अहाँके सरल स्वभावक ,पृथ्वी पर बहुतो जग जननी !
हम छी चपल स्वभावक चंचल ,विरल पुत्र हम छी अवणी,
किन्तु त्याग नहि हमर उचित अछि ,नहि जानी एहि केर कारण ?
पूत कपूत बनब सम्भव अछि ,मात कुमाता नहि केहुखन |
माँ जगदम्वे !चरण शरण ||
चरणक सेवा कएल ने कहियो ,नहि धन केलहुँ हम अर्पण ,
स्नेह अहाँ के तद्यपि अनुपम, हम जानी एहि के कारण ,
पुत्र अधम पर स्नेह ममत्वक ,अहाँ कएल निश्चय धारण ,
पूत कपूत बनब सम्भव अछि ,मात कुमाता नहि केहुखन |
माँ जगदम्वे चरण शरण ||
मातु पार्वती हम तँ केलहुँ ,अछि माँ अनेक देवक सेवन ,
वर्ष पचासी आब ने सम्भव ,हमरा सँ सबहक पूजन ?
रहल आश नहि हमरा ककरो, तेँ धेलहुँ अछि अहँक शरण ,
अहूँ कृपा नहि करब हे अम्वे! तँ जाएब पुनि ककर शरण ?
माँ जगदम्वे चरण शरण ||
अहँक मन्त्र केर एको अक्षर ,अधम सँ अधमक कान समाय ,
तँ चांडालो केर मुख निकसय ,वाणी मधुरक उच्चारण ,
दीनो पाबि लैत अछि वैभव ,मंत्राक्षर जे करय श्रवण ,
जप तप अहँक करय विधि पूर्वक ,गति मति प्राप्त विलक्षण |
माँ जगदम्वे चरण शरण ||
अंग लपेटल चिता भस्म छन्हि ,विषम हलाहल अछि भोजन ,
नग्न दिगम्बर माथ जटा छन्हि ,कंठ वासुकी आभूषण ,
भिक्षा पात्र कपाल हाथ मे, जगदीशक पदवी धारण ,
ई महत्व शिव केँ अछि भेटल , अहींक पाणिग्रहणक कारण |
माँ जगदम्वे चरण शरण ||
चन्द्रमुखी हम सत्य कहै छी ,नहि हमरा मोक्षक ईच्छा ,
नहि अभिलाषा आब जगत मे,प्राप्त करी हम वैभव धन ,
नहि विज्ञानक ज्ञान अपेक्षा , नहि सुख भोगक आकांक्षा ,
हमर याचना मातु एकेटा ,नाम जपैत रही जीवन |
माँ जगदम्वे चरण शरण ||
माँ श्यामा हम विधि पूर्वक नहि ,कएल अहाँ के आराधन ,
हम केलहुँ अपराध अनेको , हृदय कठोर भाव चिन्तन ,
किंचित कृपा दृष्टि हमरा पर, प्राप्त अहाँ के अवलम्वन,
दयामयी ई अहींक योग्य अछि ,अपन कुपुत्रो देब शरण |
माँ जगदम्वे चरण शरण ||
हे महेश्वरी ! करुणा सागर ,आफद फँसि केलहुँ सुमिरण ,
शठता हमर क्षमा करु जननी , नहि केलहुँ पद के सेवन ,
ब्यर्थ गमाएल काल स्मरण ,केलहुँ नहि हम भरि जीवन ,
भूखल प्यासें पीड़ीत बालक करय मात्र माएक सुमिरन |
माँ जगदम्वे चरण शरण ||
तद्यपि कृपा अहाँ के पाबी ,नहि कोनो आश्चर्यक बात ?
पुत्र करय अपराध घनेरो ,तदपि उपेक्षा करथि ने मात ,
हमर समान पातकी जग नहि ,पाप हारिणी नहि अहाँ सन ,
उचित बुझी से करी हे अम्वे ! हम मधुकर छी मातृ शरण |
माँ जगदम्वे ! चरण शरण ||
*****************मधुकर **************************
Friday, 1 September 2017
बिना
डेग झारि नहि चलब बाट मे ठेसो लगनेँ |
पैर वारि नहि धरब मार्ग मे काँटो गरनेँ |
आबो नहि सम्हरब दुश्मन के वैभव हरणेँ |
आनक उन्नति देखि कोनो फल नहि हो जरनेँ |
युक्ति बिना नहि कार्य सिद्ध कतबो श्रम कएनेँ |
प्राप्त सफलता नहि हो , लगन धैर्य बिनु धएनेँ |
पेट भरय नहि रस लागल आँगुर केँ चटनेँ |
भेटय शान्ति संतोष बाँटि केँ हिस्सा खेनेँ |
मोजर भेटय ने गौरव गीत अपन मुँह गेनेँ |
सुनियों केँ अन्ठाबय, हरदम गाल बजेनेँ |
बिनु साहस के युद्ध विजय नहि खड्ग पिजेनेँ |
चौर बनय नहि भात पैन बिनु आगि सिझेनेँ |
सहन शक्ति नहि बिना क्रोध के आगि मिझेनेँ |
प्रेम होए नहि बात बिचार सँ बिना रिझेनेँ |
नहि श्रद्धा विश्वास बिना आत्मा सुनझेनेँ ||
************************मधुकर *************
01/09/2017
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