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Thursday, 31 August 2017

मुनब आँखि जगत अन्हारे

मुनब आँखि जगत अन्हारे , चिन्हत लोक अँहक व्यवहारे |
मति गति हो आहार विहारे , कीर्ति करब जानत संसारे |
दोषी अनुचित कए ब्यापारे , सत्कर्मी केर सुयश अपारे |
प्रिय लगैत अछि सुखद बिचारे , नाङट रहब देखत संसारे |
घृणा पाएब मानसिक विकारे , जोश होश आबय ललकारे |
मान भेटत कए जन सत्कारे , किछुओ टिकय ने बिनु आधारे |
होए ने प्रतिक्रिया बिना प्रहारे , जिह्वा स्वाद ने बिनु चटकारे |
नेना रीझय ने बिना दुलारे , थेथर हटय ने बिनु दुत्कारे ||
खुशामदो नहि बिनु दरकारे , आमद प्राप्त हो कोनो प्रकारे |
सिद्ध दोष नहि बिनु स्वीकारे , भेटय प्रमाण तँ बंद वकारे ||
बुद्धिक बल बल सकल पछारे , छुरी बुधियार दूनू दिस धारे |
सभ दिन माथा पापक भारे , मधुकर अंतमे हरे मुरारे!
****************************************मधुकर ************

31/08/2017

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