|| अभिलाषा ||
इच्छा नै सुरपुर धाम चली
एहि मृत्यु भुवन नै पूज्य कहाबी ।
प्रतिजन्म एक हि अभिलाष हमर
निज मातृ भूमि मिथिलेक देखाबि ।।
गुणगाण बखानहुँ कोटि करी
जे करी, नै मैथिली योग्य करी ।
लखि धाम ललाम गुलामहुँ धरि
स्वीकार शम्भु तिरहुत नगरी ।।
किछु आर प्रयास करी नै करी
जँ करी,तय करी अतबेक देखाबि ।
मिथिला मुख सं मैथिली मधुर
ई कुशल अतेक सदिकाल सुनाबी ।।
हम देखी जतय , आ जतय सुनी
अपनहि निज भेष,अपन भाषा ।
जागू मैथिली जन-जन मिथिला
"रमण" क अपने सं अछि आशा ।।
रचयिता
रेवती रमण झा " रमण "
इच्छा नै सुरपुर धाम चली
एहि मृत्यु भुवन नै पूज्य कहाबी ।
प्रतिजन्म एक हि अभिलाष हमर
निज मातृ भूमि मिथिलेक देखाबि ।।
गुणगाण बखानहुँ कोटि करी
जे करी, नै मैथिली योग्य करी ।
लखि धाम ललाम गुलामहुँ धरि
स्वीकार शम्भु तिरहुत नगरी ।।
किछु आर प्रयास करी नै करी
जँ करी,तय करी अतबेक देखाबि ।
मिथिला मुख सं मैथिली मधुर
ई कुशल अतेक सदिकाल सुनाबी ।।
हम देखी जतय , आ जतय सुनी
अपनहि निज भेष,अपन भाषा ।
जागू मैथिली जन-जन मिथिला
"रमण" क अपने सं अछि आशा ।।
रचयिता
रेवती रमण झा " रमण "
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